Monday, November 30, 2020

DUROOD AKBAR /// दुरूद अकबर

 DUROOD AKBAR
                                 दुरूद अकबर 


































                                                     



Sunday, November 29, 2020

DROOD HAZRA /// दुरूद हज़ारा

                         DROOD HAZRA
                                                          
दुरूद हज़ारा 






                            

DURUD E HABIB //// दुरुद हबीब

                                              DURUD E HABIB
                                                           दुरुद  हबीब




ये दरूद आशिकाने रसूल सल्लाहु अलैहे व् सल्लम का खसुसि वज़ीफ़ा हे और इसके बे पनाह फुयूज़ बरकत हे इसे पर्ने वाले से अल्लाह की बेपनाह रेहमत होती   हे. और गुनाह माफ़ होते हे। भूली हुई चीज़े याद आती हे. हुज़ूर सल्लाहु अलैह व सल्लम की कुर्बत नसीब होती हे दुनिया के गमो से नजात मिलती हे आ मलनामें में कसरत से नेकिया लिखी जाती हे ये दरूद पढ़ने वाले पर अल्लाह राज़ी हो जाता हे दुरुद कब्र की रौशनी हे ये दुरुद शरीफ हुज़ूर सल्लाहु अलैहि व् सल्लम की  साफअत का सबसे बेहतरिन जरिया हे लिहाज़ा हर दुआके शुरू में और आखिर में ये दुरुद पड़ना चाहिए।  हर मजलिस के सुरुए में ये दुरुद पड़ना चाहिए सुबह शाम बल्कि हर नमाज़ के बाद ये दुरुद पड़ना चाहिए। इंशाल्लाह ! दुनिया और आख़िरत में कामयाबी हासिल होगी।      


अस्सलातु वसललामु अ लयका या रसूलल्लाह व् अला आलिका  व असहाबिका या हबीबल्लाह       

तर्जुमा ::
दुरुद व् सलाम हो आप पर अय अल्लाह्के रसूल ,और ऊपर आपकी आल और आपके सहाबा ले अय अल्लाह्के हबीब   

https://www.youtube.com/watch?v=TGaLvhHkDYc
      

Durood Sharif Ki Fazilat (Hindi)

Durood Sharif Ki Fazilat (Hindi)
कुराने करीम के भाग नंबर २२ के ४ रुकू की आयत ५६ में इर्शाद बारी तआला है :
اِنَّ اللہَ وَمَلٰٓئِکَتَہٗ یُصَلُّوۡنَ عَلَی النَّبِیِّ ؕ
یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا صَلُّوۡا عَلَیۡہِ وَ سَلِّمُوۡا تَسْلِیۡمًا ﴿۵۶﴾
अनुवाद: बेशक अल्लाह त'आला और उसके फ़रिश्ते दुरूद भेजते हैं उस गैब बताने वाले नबी (सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ऐ ईमान वालो ! उन पर दूरुद और सलाम भेजो |

दुरूद सलाम एक ऐसी अनोखी और बे मिस्ल इबादत है जो रिज़ा ए इलाही और क़ुर्बते मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम का कारगर जरीआ है | इस मक़बूल तरीन इबादत के ज़रिए हम बारगाहे इलाही से फ़ौरी बरकात के हुसूल और दुआ की कुबूलियत की निमत से सरफराज़ हो सकते हैं |

सहाबा ए करम रदिअल्लहु अन्हुम ने भी इसी अमले खैर के ज़रिए न सिर्फ अपने महबूब आक़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम का कुर्ब पाया बल्कि आप सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम की मु अत्तर सांसों से अपनी रोहों को महकाया और गरमाया | आप सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम के रूखे अनवर की तजल्लियात से ही सहाबा ए कराम ने अपने मुशामे जां को मुअत्तर किया और इस तरह उन्हें सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम से ख़ुसूसी संबंध और संगत की नि अ मत नसीब हुवी अगर गौर किया जाये तो मालूम होगा कि ज़ाते मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम सी संबंध ही नि अ मते ख़ास है जो आज हमें मुक़ाम व मर्तबा और इज्ज़त व शर्फ़ जैसी ला ज़वाल नि अ म तूं से नवाज़ सकती है |

अगर हम अल्लाह त आला के अता करदा निज़ामें इबादत पर निगाह दौडायें तो हमें कोई इबादत ऐसी नही दिखाई देती जिसकी कुबूलियत का कामिल यकीन हो जबकि दुरूद व सलाम एक ऐसी इबादत और नेक अमल है जो हर हाल में अल्लाह त आ ला की बारगाह में मक़बूल है | इसी तरह तमाम इबादात के लिए मखसूस हालत, समय, स्थान औरकार्यप्रणाली का होना जरूरी है | जबकि दुरूद सलाम को जिस हाल में और जिस जगह भी पढ़ा जाए अल्लाह उसे कुबूल फरमाता है | यही वजह है आशिक़ाने मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम अपनी तमाम तर इबादत को अल्लाह त अ ला की बारगाह में पेश करते समय अपने अव्वल व आख़िर दुरूद व सलाम का जीना सजा देते हैं ताकि अल्लाह त अ ला अपने महबूब के नाम सदके हमारी बन्दगी और इबादत को कुबूल फरमा ले |

हज़रत अबू हुरैरह रदी अल्लाहु अन्ह की रिवायत है हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने फ़रमाया:
वह शख्स ज़लील हुवा जिस के सामने मेरा ज़िक्र किया गया और वोह मुझ पर दुरूद नहीं भेजा |

शेरे खुदा मौला अली मुश्किलकुशा रदिअल्लहु अन्ह फरमाते हैं: हर दुवा उस वक़्त तक पर्दा ए हिजाब में रहती है जब तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम और आप सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम के अहले बैत पर दुरूद ना भेजा जाये |

स्पष्ट है कि किस तरह दुरूद शरीफ उम्मतीयुं के लिए बख्शिश व मगफिरत, कुबूलियते दुआ, बुलंदी ए दर्जात, और कुर्ब इलाही व कुर्बे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम का कारण बनता है इस सिसिले में मजीद और दुरूद व सलाम के फ़ज़ाइल जानें |
दुरूद शरीफ़ गुनाहों का कफ्फारा है |
दुरूद शरीफ़ से अमल पाक होता है |
दुरूद शरीफ़ पढ़ने से दर्जात बुलंद होते है |
दुरूद शरीफ़ पढ़ने के लिए एक कीरात अज्र लिखा जाता जो कि उहद पहाड़ जितना होता है |
अल्लाह त अला के हुक्म की तामील होती है |

एक बार दुरूद शरीफ पढने वाले पर दस रहमतें नाज़िल होती है
उसके दरजात बलंद होता होते हैं |
उसके लिए दस नेकिया लिखी जाती हैं |
उस के दस गुनाह मिटाए जाते हैं |
दुआ से पहले दुरूद शरीफ पढने से दुआ की कुबूलियत का सबब है |
दुरूद शरीफ पढना नबी ए रहमत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की शफ़ा अत का सबब है |
दुरूद शरीफ़ के जरिये अल्लाह बन्दे के ग़मों को दूर करता है |
दुरूद शरीफ तंग दस्त के लिए सदक़ा का जरिया है |
दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले को पैमाने ने भर भर के सवाब मिलता है |
दुरूद शरीफ क़ज़ा ए हाजात का जरिया है |
दुरूद शरीफ अल्लाह की रहमत और फिरिश्तो की दुआ का बा इस है |
दुरूद शरीफ अपने पढ़ने वाले के लिए पाकीजगी और तहारत का बा इस है
दुरूद शरीफ पढ़ना क़ियामत के ख़तरात से निज़ात का सबब है |
दुरूद शरीफ पढ़ने से बन्दे को भूली हुवी बात याद आ जाती है |
यह अमल बन्दे को जन्नत के रस्ते पर डाल देती है |
दुरूद शरीफ पढ़ने की वजह से बंदा आसमान और ज़मीन में काबिले तारीफ हो जाता है |दुरूद शरीफ पढ़ने की वजह से बंदा आसमान और ज़मीन में काबिले तारीफ हो जाता है |
दुरूद शरीफ पढ़ने वाले को इस अमल की वजह से उसकी ज़ात, अमल, उम्र और बहतरी के असबाब में बरकत हासिल होती है |
दुरूद शरीफ पढ़ने वाले से आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मुहब्बत फ़रमाते हैं |
जो शख्श दुरूद शरीफ़ को ही अपना वजीफ़ा बना लेता है अलाह पाक उसके दुनिया और आखिरत के काम अपने ज़िम्मे ले लेता है |
दुरूद शरीफ़ पढ़ने का सवाब गुलाम आजाद करने से भी अफज़ल है |

क्या आप दुरूद शरीफ़ पढ़ने की फ़ज़ीलत जानते है?

क्या आप दुरूद शरीफ़ पढ़ने की फ़ज़ीलत जानते है?

मफ़हूम -ए -हदीस -अबू हुरैरा रज़ी अल्लाहू अन्हु ने कहा की अल्लाह के रसूल सल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया की जो सख्श मुझ पर एक बार दुरूद शरीफ भेजेगा अल्लाह तअला उस पर 10 मर्तबा रेहमत उतरेगा और उस के 10 गुनहा मॉफ फरमाएगा और 10 दर्जे बुलंद फरमाएगा।

दुरूद शरीफ़ गुनाहों का कफ्फारा है।

दुरूद शरीफ़ से अमल पाक होता है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने से दर्जात बुलंद होते है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने के लिए एक कीरात अज्र लिखा जाता जो कि उहद पहाड़ जितना होता है, अल्लाह त आला के हुक्म की तामील होती है, दुआ से पहले दुरूद शरीफ पढने से दुआ की कुबूलियत का सबब है।

दुरूद शरीफ पढना नबी ए रहमत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम)
की शफ़ा अत का सबब है।

दुरूद शरीफ़ के जरिये अल्लाह बन्दे के ग़मों को दूर करता है।

दुरूद शरीफ तंग दस्त के लिए सदक़ा का जरिया है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले को पैमाने ने भर भर के सवाब मिलता है।

दुरूद शरीफ क़ज़ा ए हाजात का जरिया है।

दुरूद शरीफ अल्लाह की रहमत और फिरिश्तो की दुआ का बा इस है।

दुरूद शरीफ अपने पढ़ने वाले के लिए पाकीजगी और तहारत का बा इस है।

दुरूद शरीफ पढ़ना क़ियामत के ख़तरात से निज़ात का सबब है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने का सवाब गुलाम आजाद करने से भी अफज़ल है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला हर किसम के खौफ़ से निज़ात पता है।

वाली ए दो जहाँ नबी (सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम) दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले के ईमान की खुद गवाही देंगे।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले पर आक़ा ऐ दो जहाँ की शिफा’अत वाजिब हो जाती है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले के लिए अल्लाह त’ आला की रिज़ा और रहमत लिख दी जाती है |
अल्लाह त’आला के ग़ज़ब से अमन लिख दिया जाता है।

उस की पेशानी पे लिख दिया जाता है कि यह निफ़ाक़ से बरी है।

लिख दिया जाता है यह भी कि यह दोज़ख (जहन्नम) से बरी है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले को रोज़े हश्र अर्शे-इलाही के नीचे जगह दी जाएगी।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले की नेकियौं का पलड़ा वज़नी होगा।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले के लिए जब वोह हौज़े कौसर पर जायेगा तब खूसूसी इनायत होगी |
दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला क़यामत के दिन सखत प्यास से अमान में जायेगा।

वह पुल सिरात से तेज़ी और आसानी से गुजर जाएगा।

पुल सीरत पर उसे नूर अता होगा।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला मौत से पहले अपना मुकाम जन्नत में देख लेता है।

दुरूद शरीफ़ की बरकत से माल बढ़ता है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ना इबादत है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ना अल्लाह त’आ ला को हमारे सब अमलों से ज़यादा प्यारा है |

दुरूद शरीफ़ पाक मजलिसों की ज़ीनत है।

दुरूद शरीफ़ पाक तंगदस्ती को दूर करता है।

जो दुरूद शरीफ़ पढ़ेगा वह रोज़े हशर मदनी आक़ा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) के सब से ज़यादा करीब होगा।

दुरूद शरीफ़ अगर पढ़ कर किसी मरहूम को बख्शा जाये तो उसे भी नफा देता है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने से अल्लाह त’ आला और उसके हबीब का क़ुर्ब (क़रीबी) नसीब होता है |
दुरूद शरीफ़ पढ़ने से दुश्मनों पर फतह और नुसरत हासिल होती है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले का दिल ज़ंग से पाक हो जाता है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले शख्श से लोग मोहब्बत करते है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला लोगों की गीबत से महफूज़ रहता है।

सब से बड़ी निअ’मत दुरूद शरीफ़ पढ़ने की यह है के उसे खवाब में प्यारे प्यारे आक़ा (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की ज़ियारत होती है जुज़ब अल – क़लुब में निम्मे लिखित फ़ज़ा इल बयान है।

एक बार दुरूद शरीफ़ पढ़ने से १० गुनाह माफ़ होते है १० नेकीयाँ मिलती हैं १० दर्जे बुलंद होते हैं १० रहमतें नाज़िल होती हैं।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले की दुआ हमेशा क़ुबूल होती है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले का कंधा (शोल्डर) जन्नत के दरवाज़े पर नबी (सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम) के कंधे मुबारक के साथ छु (टच) जायेगा, सुबहानल्लाह।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला कयामत के दिन सब से पहले आक़ा (सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम) का पास पहुँच जायेगा।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले के सारे कामों के लिए क़यामत के दिन इनायत होगी।

दुरूद शरीफ़ पढ़ना दुनिया और आखिरत के हर दर्द व ग़म का वाहिद इलाज़ है।

दुरूद शरीफ़ रूहानियत के खजाने की चाबी है।

दुरूद शरीफ़ आशिकों की मिअराज है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ना मुनाफा ही मुनाफा है और यह मुनाफा दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले को जन्नत तक पहुंचा देता है।

दुरूद शरीफ़ पाक अल्लाह त आ ला की नाराज़गी से बचने का आसान अमल है।

दुरूद शरीफ़ एक ऐसी इबादत है जिसका फ़ायदा उसी की तरफ लौटता है जो इसको पढ़ता है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ना ऐसा है कि जैसा अपनी ज़ात के लिए दुआ करना है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला रूहानी तौर पर तर्बियते मुहम्मद (सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम) में होता है।

दारूत की कसरत करना अहल – इ-सुन्नत की अलामत है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला हर मजिलस में ज़ैब व ज़ीनत हासिल करता है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले को बरोज़े हश्र में जन्नत की रहे खुली मिलेंगी, इन्शा अल्लाह।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले के बदन से खुशबू आया करेगी।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले को हमेसा नेकी करने की खवाहिश रहा करेगी।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले का नाम बारगाहे रिसालत में लिया जायेगा।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला मरने तक ईमान पर काइम रहेगा।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले के लिए ज़मीन व आसमान वालो की दुआएं वक़फ रहेंगी।

दुरूद शरीफ़ पाक पढ़ने वाले को ज़ात में अमल में उम्र में औलाद में और माल व असबाब में बरकत होगी जिसके ४ पुश्तों तक आसार ज़ाहिर होंगे।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले का घर रोशन रहेगा।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला का चेहरा पुरनूर और गुफ्तार में हलावत (मिठास) होगी।

दुरूद शरीफ पढ़ने वाले की मजलिस में बेठने वाले की मजलिस में लोग खुश होगे।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले की दावत का सवाब १० गुने होगा।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला फ़रिश्तों का इमाम बनेगा।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला हुजुर की कौल व फअल की इत्तिबा करेगा।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला हमेशा नेक हिदायत हासिल करेगा।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले थोड़े ही अर्से में धनी हो जाता है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला दुनिया में मारूफ हो जाता है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाला शख्श की जुबान से मैदाने हशर में नूर की किरणें निकलेंगी।

दुरूद शरीफ़ से आँखों को नूर मिलता है।

दुरूद शरीफ़ से सेहत बरक़रार रहती है।

दुरूद शरीफ़ से आक़ा की मोहब्बत का जज़्बा और बढ़ता है।

दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले को किसी की मुहताजी न होगी।

दुरूद शरीफ पढ़ने से बन्दे को भूली हुवी बात याद आ जाती है।

यह अमल बन्दे को जन्नत के रस्ते पर डाल देती है।

दुरूद शरीफ पढ़ने की वजह से बंदा आसमान और ज़मीन में काबिले तारीफ हो जाता है।

दुरूद शरीफ पढ़ने वाले को इस अमल की वजह से उसकी ज़ात, अमल, उम्र और बहतरी के असबाब में बरकत हासिल होती है।

दुरूद शरीफ पढ़ने वाले से आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मुहब्बत फ़रमाते हैं।
जो शख्श दुरूद शरीफ़ को ही अपना वजीफ़ा बना लेता है अलाह पाक उसके दुनिया और आखिरत के काम अपने ज़िम्मे ले लेता है।

DAROOD MUSTAJAB UL DAWAT // दुरूदे मुसतजुबुल दावत

                                                  दुरूदे मुसतजुबुल दावत 



ये दुरुद अल्लाह का रहमो करम हासिल करने के लिए बहोत बारे वसीला हे. जो शख्स इसे सौ (१०० ) मर्तबा फजर की नमाज़ के बाद और सौ (100 )मर्तबा ईशा की नमाज़ के बाद पढ़े  वो जिदगी भर मुअज़्ज़ज़ और मुकर्रर हे. अगर तगदस्ती और मुफलिसी दूर करने की निय्यत से पढ़े तो बहोत जल्द अल्लाह  उस पर करम करेगा और उसके रिज़्क़ में इज़ाफ़ा हो जायेगा और जो सख्श इस दुरुद पाक को रोज़ाना कमसे कम ग्यारह (11 ) मर्तबा पढ़े तो वो  इस दुरूदे पाक की वजहसे इज़्ज़त, दौलत और बरकत जैसी अज़ीम  नेमतों मालामाल हो जायेगा अगर कोई सख्श रिज़्क़ हलाल खाकर नव्वे (90) दिन तक रोज़ाना इसे ग्यारह सौ (११००) मर्तबा सोते वक्त पढ़े तो इंशाअल्लाह ! ज़ियारते रसूल सल्लाहो अलयही वसल्ल्म से मुसरफ होगा। इसके आलावा जब भी इसे पढ़ा जायेगा  तो इससे दुनिया और आख़िरत की भलाई हासिल होगी।


                                                 दुरूदे मुसतजुबुल दावत 

                सल्लाहु एलन नबीय्यिल उम्मियिल करीमी व् अला आलिहि व् असहाबिहि व् सल्ल्म।
              तर्जुमा ::   रहमत नाजिल फरमाइ  अल्लाहने ऊपर नबी के जो उम्मी , करीम हे. और ऊपर उनकी आल और उनके सहाबा के, और सलामती नाज़िल फरमाए।

DROOD E TAJ