Durood Sharif Ki Fazilat (Hindi)
कुराने करीम के भाग नंबर २२ के ४ रुकू की आयत ५६ में इर्शाद बारी तआला है :
اِنَّ اللہَ وَمَلٰٓئِکَتَہٗ یُصَلُّوۡنَ عَلَی النَّبِیِّ ؕ
یٰۤاَیُّہَا الَّذِیۡنَ اٰمَنُوۡا صَلُّوۡا عَلَیۡہِ وَ سَلِّمُوۡا تَسْلِیۡمًا ﴿۵۶﴾
अनुवाद: बेशक अल्लाह त'आला और उसके फ़रिश्ते दुरूद भेजते हैं उस गैब बताने वाले नबी (सल्ल्लाहु अलैहि व सल्लम) पर ऐ ईमान वालो ! उन पर दूरुद और सलाम भेजो |
दुरूद सलाम एक ऐसी अनोखी और बे मिस्ल इबादत है जो रिज़ा ए इलाही और क़ुर्बते मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम का कारगर जरीआ है | इस मक़बूल तरीन इबादत के ज़रिए हम बारगाहे इलाही से फ़ौरी बरकात के हुसूल और दुआ की कुबूलियत की निमत से सरफराज़ हो सकते हैं |
सहाबा ए करम रदिअल्लहु अन्हुम ने भी इसी अमले खैर के ज़रिए न सिर्फ अपने महबूब आक़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम का कुर्ब पाया बल्कि आप सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम की मु अत्तर सांसों से अपनी रोहों को महकाया और गरमाया | आप सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम के रूखे अनवर की तजल्लियात से ही सहाबा ए कराम ने अपने मुशामे जां को मुअत्तर किया और इस तरह उन्हें सरकारे दो आलम सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम से ख़ुसूसी संबंध और संगत की नि अ मत नसीब हुवी अगर गौर किया जाये तो मालूम होगा कि ज़ाते मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम सी संबंध ही नि अ मते ख़ास है जो आज हमें मुक़ाम व मर्तबा और इज्ज़त व शर्फ़ जैसी ला ज़वाल नि अ म तूं से नवाज़ सकती है |
अगर हम अल्लाह त आला के अता करदा निज़ामें इबादत पर निगाह दौडायें तो हमें कोई इबादत ऐसी नही दिखाई देती जिसकी कुबूलियत का कामिल यकीन हो जबकि दुरूद व सलाम एक ऐसी इबादत और नेक अमल है जो हर हाल में अल्लाह त आ ला की बारगाह में मक़बूल है | इसी तरह तमाम इबादात के लिए मखसूस हालत, समय, स्थान औरकार्यप्रणाली का होना जरूरी है | जबकि दुरूद सलाम को जिस हाल में और जिस जगह भी पढ़ा जाए अल्लाह उसे कुबूल फरमाता है | यही वजह है आशिक़ाने मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम अपनी तमाम तर इबादत को अल्लाह त अ ला की बारगाह में पेश करते समय अपने अव्वल व आख़िर दुरूद व सलाम का जीना सजा देते हैं ताकि अल्लाह त अ ला अपने महबूब के नाम सदके हमारी बन्दगी और इबादत को कुबूल फरमा ले |
हज़रत अबू हुरैरह रदी अल्लाहु अन्ह की रिवायत है हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम ने फ़रमाया:
वह शख्स ज़लील हुवा जिस के सामने मेरा ज़िक्र किया गया और वोह मुझ पर दुरूद नहीं भेजा |
शेरे खुदा मौला अली मुश्किलकुशा रदिअल्लहु अन्ह फरमाते हैं: हर दुवा उस वक़्त तक पर्दा ए हिजाब में रहती है जब तक हुज़ूर सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम और आप सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम के अहले बैत पर दुरूद ना भेजा जाये |
स्पष्ट है कि किस तरह दुरूद शरीफ उम्मतीयुं के लिए बख्शिश व मगफिरत, कुबूलियते दुआ, बुलंदी ए दर्जात, और कुर्ब इलाही व कुर्बे मुस्तफ़ा सल्लल्लाहु अलैह व सल्लम का कारण बनता है इस सिसिले में मजीद और दुरूद व सलाम के फ़ज़ाइल जानें |
दुरूद शरीफ़ गुनाहों का कफ्फारा है |
दुरूद शरीफ़ से अमल पाक होता है |
दुरूद शरीफ़ पढ़ने से दर्जात बुलंद होते है |
दुरूद शरीफ़ पढ़ने के लिए एक कीरात अज्र लिखा जाता जो कि उहद पहाड़ जितना होता है |
अल्लाह त अला के हुक्म की तामील होती है |
उसके दरजात बलंद होता होते हैं |
उसके लिए दस नेकिया लिखी जाती हैं |
उस के दस गुनाह मिटाए जाते हैं |
दुआ से पहले दुरूद शरीफ पढने से दुआ की कुबूलियत का सबब है |
दुरूद शरीफ पढना नबी ए रहमत (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) की शफ़ा अत का सबब है |
दुरूद शरीफ़ के जरिये अल्लाह बन्दे के ग़मों को दूर करता है |
दुरूद शरीफ तंग दस्त के लिए सदक़ा का जरिया है |
दुरूद शरीफ़ पढ़ने वाले को पैमाने ने भर भर के सवाब मिलता है |
दुरूद शरीफ क़ज़ा ए हाजात का जरिया है |
दुरूद शरीफ अल्लाह की रहमत और फिरिश्तो की दुआ का बा इस है |
दुरूद शरीफ अपने पढ़ने वाले के लिए पाकीजगी और तहारत का बा इस है
दुरूद शरीफ पढ़ना क़ियामत के ख़तरात से निज़ात का सबब है |
दुरूद शरीफ पढ़ने से बन्दे को भूली हुवी बात याद आ जाती है |
यह अमल बन्दे को जन्नत के रस्ते पर डाल देती है |
दुरूद शरीफ पढ़ने की वजह से बंदा आसमान और ज़मीन में काबिले तारीफ हो जाता है |दुरूद शरीफ पढ़ने की वजह से बंदा आसमान और ज़मीन में काबिले तारीफ हो जाता है |
दुरूद शरीफ पढ़ने वाले को इस अमल की वजह से उसकी ज़ात, अमल, उम्र और बहतरी के असबाब में बरकत हासिल होती है |
दुरूद शरीफ पढ़ने वाले से आप सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम मुहब्बत फ़रमाते हैं |
जो शख्श दुरूद शरीफ़ को ही अपना वजीफ़ा बना लेता है अलाह पाक उसके दुनिया और आखिरत के काम अपने ज़िम्मे ले लेता है |
दुरूद शरीफ़ पढ़ने का सवाब गुलाम आजाद करने से भी अफज़ल है |
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